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आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक / ग़ालिब

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आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर<ref>जीतने</ref> होते तक

दाम-ए हर-मौज<ref>हरेक तरंग का जाल</ref> में हैं हल्क़ा-ए-सद काम-ए-नहन्ग<ref>सौ जबड़ों वाले मगरमच्छ का घेरा</ref>
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल<ref>उपेक्षा</ref> न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुम को ख़बर होते तक

परतव-ए-ख़वुर<ref>सूरज का प्रतिबिम्ब</ref> से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक

यक-नज़र बेश<ref>ज़्यादा</ref> नहीं, फ़ुर्सत-ए-हस्ती<ref>जीने की अवधि</ref> ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर<ref>चिंगारी का नृत्य</ref> होते तक

ग़मे-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़<ref>अतिरिक्त</ref> मर्ग <ref>मृत्यु</ref> इलाज
शम्'अ हर रंग में जलती है सहर होते तक

शब्दार्थ
<references/>