इश्क़ में क्या लुटा, किसे रोता?
जो न पाया था, उसको क्या खोता!
एक बस चैन ही गंवाया था,
रंज उसका भी कब तलक होता?
दिल ने इक बद्दुआ भी दी होती,
क्या सितमगर यूँ चैन से सोता?
नीयते राह्बर परख लेना,
हर कोई रहनुमा नहीं होता!
मेरी ग़ज़लें हैं बाज़-गश्ते-जहाँ
जैसे पिंजरे में बोलता तोता!