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विश्वास / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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आज तक जीता रहा विश्वास लेकर,
वेदनाओं में मुखर उल्लास लेकर,
विश्व पर मानव जरा विश्वास तो कर।

अश्रुओं से पूछ लो विश्वास मेरा,
खोज करुणा की कड़ी में हास मेरा,
आस है पीछे मगर विश्वास पहले,
जिंदगी पीछे चले तो श्वांस पहले,

धीर मैं धारे हुए हूँ प्यास लेकर,
पाणि में हूं पात्र सूना पास लेकर,
आज तक जीता रहा विश्वास लेकर।

मिल सकेंगे राम मेरे ,मैं भरत हूँ,
ओ मधुर विश्वास !तुझमें लीन रत हूं,
मैं नहीं म्रिय -माण ! मेरे प्राण कहते,
आंसुओं में जागकर अरमान कहते,

जागती रजनी नयन में प्रात लेकर,
जोहता हूं बाट कंपित गात लेकर,
आज तक जीता रहा विश्वास लेकर ।

एक है विश्वास जिस पर जी रहा जग,
 एक ही पाथेय जिससे कट रहे मग,
सत्य ,मैं दो पल सुधा को भूलकर कब,
पी चुका विश्वास का जब मदिरा आसब,

खूब छककर पी चुका जब हास लेकर,
ठोकरें दे तुम गए परिहास देकर,
आज तक जीता रहा विश्वास लेकर।

जी रही विश्वास पर शबरी मिलन की,
जोहती है चातकी भी राह घन की,
चीर ले लो द्रौपदी! विश्वास का तुम,
खोल गोपन दर्द के इतिहास का तुम,

लो समझ, कब तक चलूं इतिहास ले कर,
जा चुके पतझड़ सदा मधुमास देकर,
आज तक जीता रहा विश्वास लेकर।

मैं अगर विश्वास छोड़ूं आज अपना,
दूर कर विश्वास तज दूं काज अपना,
तो न क्षण भर भी टिकेगा नाम मेरा,
नाम मनुज विश्वास करना काम मेरा,

जग कहेगा अंत में भी लाश लखकर,
आज मानव चल चुका उच्छ्वास लेकर,
आज तक जीता रहा विश्वास लेकर।