भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काँटे आए कभी गुलाब आए.. / श्रद्धा जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काँटे आए कभी गुलाब आए
लेकिन आए तो बेहिसाब आए

रंग उड़ने लगा है चेहरे का
जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> आए

काम आए न कोई चतुराई
ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए

दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो
पास आए तो बेनक़ाब आए

गिरनेवाली है घर की छत “श्रद्धा”
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए

शब्दार्थ
<references/>