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कुछ न जुटा पाईं नारियां? / रमा द्विवेदी

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क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?
क्यों नहीं आवाज उठा पाईं नारियां?
नारी के बिना पुरुष क्या है? ईश अधूरा,
फिर क्यों नहीं सम्मान से जी पाईं नारियां?
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?
लोगों ने उसे पूजा है देवी बनाकर,
पर क्यों नहीं इंसान बन पाईं नारियां?
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?
सदियों से कष्ट भोगती रही हैं नारियां,
फिर क्यों नहीं विद्रोह कर पाईं नारियां?
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?
नारी ने अपनी शक्ति से है विश्व संवारा,
पर खुद के लिए कुछ न जुटा पाईं नारियां?
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?
नारी तुझे टकराना होगा इस समाज से,
अगर स्वाभिमान से तुम्हें जीना है नारियां।
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?
नारी तुम अपनी शक्ति से नव-इतिहास रचाओ,
कदम प्रगति की ओर बढ़ाओ हे नारियां।
क्यों ज़ुल्मों को ही झेलती रहीं हैं नारियां?