भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ाली जगहें / तेमसुला आओ / श्रुति व माधवेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी आत्मा की
ख़ाली जगहों में
परछाइयाँ
हैं लम्बी
और हवाएँ सर्द

ये लम्बी होती हुई परछाइयाँ
यादों को
मार रही हैं ।

मेरी आत्मा की
ख़ाली जगहों में
गूँजें
खोखली हैं
स्मृति मरती हुई

खोखली गूँजें
प्रतिध्वनित होती हैं
मृत्यु को पूर्ण करती हुई ।

अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : श्रुति व यादवेन्द्र