भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरु की खोज / सरवन बख्तावर

Kavita Kosh से
(गुरु की खोज / सरवन परोही से पुनर्निर्देशित)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदिया के इस पार, बैठल रहली उदास,
कोई लाईके, हिया हमके छोर गैल,
बोले हिया तक हमार-तोहार साथ,
अब और आगे कैसे जाय, कैसे करी हम नदिया पार?
इधर तकली, उधर तकली, कोय देखैते न रहा
बस बैठ गैली मान कर के हार

आँख बन्द होयगे, सूत गैली, ओही नदिया के किनारे
सपना रहा, या सच्चे के, पर ओतने में देखान एगो छबि महान,
रोमांच पुलकित हो जात है देहिया, करत उ दास्तान बयानकृ

वोही सुन्दर सावर रूप, होठ पर दिव्य मुस्कान,
मोर मुकुट, गल बनमाला, दिव्य आभूषण, हाथ में बंसी का प्याला,
पीत वस्त्र रूप अद्भुत निराला,

हिरदय से लगायके बोलिस, हम कराबे तोहके नदिया पार,
मुँह से कछु बानी ना निकरल, आँखन बन गैल हिरदय के द्वार,
तब भैल हमके अहसास-
‘‘गुरु गुरु धुनधत फिरा, गुरु था हमरे पास,
जो कृष्ण को गुरु कहा, उ तो न रहा कभी उदास।’’