Last modified on 8 नवम्बर 2009, at 19:34

गो मेरे दिल के ज़ख़्म जाती हैं / अहमद नदीम क़ासमी

गो मेरे दिल के ज़ख़्म ज़ाती हैं
उनकी टीसें तो कायनाती हैं

आदमी शशजिहात का दूल्हा
वक़्त की गर्दिशें बराती हैं

फ़ैसले कर रहे हैं अर्शनशीं
आफ़तें आदमी पर आती हैं

कलियाँ किस दौर के तसव्वुर में
ख़ून होते ही मुस्कुराती हैं

तेरे वादे हों जिनके शामिल-ए=हाल
वो उमंगें कहाँ समाती हैं

ज़ाती= निजी; कायनाती= सांसारिक; शशजिहात=छह दिशाओं का; अर्शनशीं= कुरसी पर बैठे हुए व्यक्ति