पद संख्या 61 तथा 62
(61), 
देव-
 सकल सुखकंद, आनंदवन -पुण्यकृत, बिंदुमाधव द्वंद्व- विपतिहारी। 
 यस्यांघ्रिपाथोज अज -शंभु -सनकादि-शुक-शेष -मुनिवृंद-अलि-निलयकारी।1। 
अमल मरकत  श्याम, काम शतकोटि छावि, पीतपट तड़ित इव जलदनीलं।
 अरूण शतपत्र लोचन, विलोकनि चारू,प्राणतजन-सुखद,करूणाद्र्शीलं।2।
 काल-गजराज-मृगराज, दनुजेश-वन -दहक पावक, मोह-निशि-दिनेशं। 
चारिभुज चक्र -कौमिदकी-जलज-दर,सरसिजापरि यथा रजहंसं।3।
 मुकुट,कुंडल, तिलक,अलक अलिव्राइतव, भृकुटि,द्विज, अधरवर,चारूनासा।
 रूचिर सुकोल,दर ग्रीव सुखसीव, हरि इंदुकर कुंदमिव मधुरहासा।4। 
उरसि वनमाल सुविशाल नवमंजरी, भ्राज श्रीवत्स-लांछन उदारं।
 परम ब्रह्मन्य , अतिधन्य, गतमन्तु,अज, अमितबल, बिपुल महिमा अपारं।5। 
हार-केयूर, कर कनक कंकन रतन-जटित मणि -मेखला कटिप्रदेशं। 
युगल पद नूपुरामुखर कलहंसवत, सुभग सर्वांग सौंदर्य वेशं।6। 
सकल सौभाग्य-संयुक्त त्रैलोक्य-श्री दक्षि दिशि रूचिर वारीश-कन्या।
 बसत विबुधावगा निकट तट सदनवर, नयन निरखंति नर तेऽति धन्या।7।
अखिल मंगल भवन, निबिड़ संशय -शमन दमन-वृजिनाटवी, कष्टहर्ता। 
विश्वधृत,विश्वहित, अजित,गोतीत, शिव, विश्वपालन, हरण, विश्वकर्ता।8। 
ज्ञान-विज्ञान-वैराग्य-ऐश्वर्य-निधि, सिद्धि अणिमादि दे भूरिदानं। 
ग्रसित-भव-व्याल अतित्रास तुलसिदास,त्राहि श्रीराम उरगारि-यानं।9।
(62),
इहै परम फलु परम बड़ाई।
 नखसिख रूचिर बिंदुमधव छबि निरखहिं नयन अघाई। 1। 
बिसद किसोर पीन सुंदर बपु, श्याम सुरूचि अधिकाई। 
नीलकंज, बारिद, तमाल, मनि , इन्ह तनुते दुति पाई।2। 
मृदुल चरन शुभ चिन्ह , पदज, नख अति अभूत उपमाई। 
अरून नील पाथोज प्रसव जनु, मनिजुत दल-समुदाई।3। 
जातरूपम नि-जटित-मनोहर,नूपुर जन-सुखदाई। 
जनु हर-उर हरि बिबिध रूप धरि, रहे बर भवन बनाई।4। 
कटि तट रटति चारू किंकिनि-रव, अनुपम , बरनि न जाई।
 हेम जलज कल कलित मध्य जनु, मधुकर मुखर सुहाई।5। 
उर बिसाल भृगुचरन चारू अति, सूचत कोमलताई। 
कंकन चारू बिबिध भूषन बिधि, रचि निज कर मन लाई।6। 
गज-मनिमाल बीच भ्राजत कहि जाति न पदक निकाई। 
जनु उड्डगन-मंडल बरिदपर, नवग्रह रची अथाई।7। 
भुजगभोग-भुजदंड कंज दर चक्र गदा बनि आई ।
 सेाभासीव ग्रीव , चिबुकाधर, बदन अमित छबि छाई।8।
 कुलिस, कुंद कुडमल, दामिनि-दुति, दसनन देखि लजाई। 
नासा - नसन -कपोल, ललित श्रुति कुंडल भ्रू मोहि भाई।9। 
कुंचित कच सिर मुकुट,भाल पर, तिलक कहौं समुझाई।
 अलम तड़ित जुग रेख इंदु महँ, रहि तजि चंचलताई।10। 
निरमल पीत दुकूल अनूपम ,उपमा हिय न समाई। 
बहु मनिजुत गिरि नील सिखपर कनक-बसन रूचिराई।11।
 दच्छ भाग अनुराग-सहित इंदिरा अधिक ललिताई। 
हेमलता जनु तरू तमाल ढिग, नील निचोल ओढ़ाई।12। 
सत सारदा सेष श्रुति मिलिकै, सोभा कहि न सिराई। 
तुलसिदास मतिमंद द्वंदरत कहै कौन बिधि गाई।13।