विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 1
पद संख्या 11 तथा 12
(11),
छेव, देव, भीषणाकार, भैरव , भयंकर, भूत प्रेत- प्रमथषिपति, विपति-हर्ता।
मोह -मूषक-माजार, संसार-भय-हरण, तारण -तरण, अभयकर्ता।1।
अतुल बल, विपुल विस्तार, विग्रह गौर, अमल अति धवल धरंणीधराभं।
शिरसि संकुलित-कल-जूट पिंगलजटा, पटल-शट-कोटि-विद्युच्छटाभं।2।
भ्राज विबुधापगा आप पावन परम, मौलि-मालेव शोभा विचित्रं।
ललित लल्लाटपर राज रजनीशकल, कलाधर, नौमि हर धनद-मित्रं।3।
इंदु पावक भानु नयन मर्दन-मयन , गुण-अयन, ज्ञान-विज्ञान-रूपं।
रमण-गिरिजा, भवन भूधराधिप सदा, श्रवण कुंडल, वदनछवि अनूपं।4।
चर्म असि शूल धर डमरू शर चाप कर यान वृषभेश करूणा-निधानं।
जरत सुर असुर नरलोक शोकाकुलं मृदुल चित अजित कृत गरलपानं।5।
भस्म तनु भूषणं व्याघ्र चर्माम्बरं उगर नर मौलि उरमालधारी।।
डाकिनी शाकिनी खेचरं भूचरं यत्रं मंत्र भंजन , प्रबल कल्पमषारी। 6।
काल अतिकाल कलिकाल व्यालादि खग त्रिपुर मर्दन भीम कर्म भारी।
सकल लोकान्त-कल्पान्त शूलाग्र कृत दिग्गजाव्यक्त-गुण नृत्यकारी।7।
पाप संताप घनघोर संसृति दीन, भ्रमत जग योनि नहिं कोपि त्राता।
पाहि भैरव रूप राम रूपी रूद्र बंधु गुरू जनक जननी विधाता।8।
यस्य गुण गण गणपति विमल मति शारदा निगम नारद प्रमुख ब्रह्मचारी।
शेष सर्वेश आसीन आसवंदन, दास तुलसी प्रणत-त्रासहारी।9।।
(12)
सदा -
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं।
काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं।।
कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुंदरं, सच्चिदानंदकंदं।
सिंद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृंदारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं।।
ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं।
नौमि करूणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं।।
लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं।
कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं।।
तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।
प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं।।