विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 2
पद 13 से 14 तक
(13)
स्ेावहु सिव-चरन-सरोज-रेनु।
कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनु।।
कर्पूर-गौर, करूना-उदार।
संसार-सार, भुजगेन्द्र-हार।।
सुख-जन्मभूमि, महिमा अपार।
निर्गुन, गुननायक, निराकार।।
त्रयनयन, मयन-मर्दन महेस।
अहँकार-निहार-उदित दिनेस।।
बर बाल निसाकर मौलि भ्राज।
त्रैलोक-सोकहर प्रमभराज।।
जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल।
तिन्ह की गति कासीपति कृपाल।।
उपकारी कोऽपर हर-समान।
सुर-असुर जरत कृत गरल पान।।
बहु कल्प उपायन करि अनेक।
बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक।।
बिग्यान-भवन, गिरिसुता-रमन।
कह तुलसिदास मम त्राससमन।।
,(14),
देखो देखो बन बन्यो आजु उमाकांत।
मानों देखन तुमहिं आई रितु बसंत।1।
जनु तनुदुति चंपक कुसुम माल।
बर बसन नील नूतन तमाल।2।
कलकदलि जंघ, पद कमल लाल।
सूचत कटि केहरि गति मराल।3।
भूषन प्रसून बहु बिबिध रंग।
नूपुर किंकिनि कलरव बिहंग।4।
कर नवल बकुल पल्लव रसाल।
श्रीफल कुच कंचुकिलता जाल।5।
आनन सरोज, कच मधुप गुंज।
लोचन बिसाल नव नील कंज।6।
पिक बचन चरित बर बर्हि कीर।
सित सुमन हास लीला समीर।7।
कह तुलसिदास सुनु सिव सुजान।
उर बसि प्रपंच रचे पंचबान।8।
करि कृपा हरिय भ्रम-फंद काम।
जेहि हृदय बसहिं सुखरासि राम।9।