विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 3
पद 15 से 16 तक
(15),
दुसह दोष-दुख, दलनि, करू देवि दाया।
विश्व-मूलाऽसि, जन-सानुकूलाऽसि, कर शूलधारिणि, महामूलमाया।1।
तडित गर्भाड्ग सर्वांड्ग सुन्दर लसत, दिव्य पट भव्य भूषण विराजैं।
बालगृग -मंजु खंजन-विलोचनि, चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं।2।
रूप-सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि, रामोऽसि, वामाऽसि , वर बुद्धि बानी।
छमुख-हेरंब-अबासि, जगदंबिके, शंभु-जायासि जय जय भवानी।3।
चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष मुंड मद-भंग कर अंग तोरे।
शुंभ-निशुंभ-कुम्भीष रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अति-वृन्द बोरे।4।
निगम-आगम -अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहिं सहसजीहा ।
देहि मा, मोहि पन प्रेम नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
(16)
जय जय जगजननि देवि सुर-नर-मुनि-असुर-सेवि,
भुक्ति-मुक्ति-दायिनी, भय-हरणि कालिका।
मंगल -मुद-सिद्धि-सदनि, पर्वशर्वरीश-वदनि,
ताप-तिमिर-तरूण-तरणि-किरणमाला।1।
वर्म, चर्म कर कृपाण,शूल-शेल-धनुषबाण,
धरणि, दलनि दानव-दल, रण-करालिका।
पूतना-पिंशाच-प्रेत-डाकिनि-शाकिनि-समेत,
भूत-ग्रह-बेताल-खग-मृगालि-जालिका।2।
जय महेश-भामिनी, अनेक-रूप-नामिनी,
समस्त लोक-स्वामिनी, हिमशैल-बालिका।
रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अचल नेम,
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका।3।