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विनयावली / तुलसीदास / पद 11 से 20 तक / पृष्ठ 4

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पद 17 से 18 तक

 (17)

जय जय भगीरथनन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दनि,
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जहनु बालिका।

 बिस्नु-पद-सरोजासि, ईस-सीसपर बिभासि,
त्रिपथगासि, पुन्यरासि, पाप-छालिका।1।


बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि,
भँवर बर बिभंगतर तरंग-मालिका।

पुरजन पूजोहार, सोभित ससि धवलधार,
भंजन भव-भार, भक्ति-कल्पथालिका।2।


निज तटबासी बिहंग , जल-थल-चर पसु-पतंग,
कीट, जटिल तापस सब सरिस पालिका।

तुलसी तव तीर तीर, सुमिरत रघुबंस-बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका।3।


(18),

जयति जय सुरसरी जगदखिल पावनी।
विष्णु पदकंज मकरंद अम्बुवर वहसि, दुख दहसि, अघवृन्द-विद्राविनी।1।

मिलित जलपात्र अज युक्त हरिचरणरज, विरज वर वारि त्रिपुरारि ंिशर धामिनी।
जह्नु कन्या धन्य , पुण्यकृत सगर -सुत, भूधरद्रोणि-विद्दरणि, बहुनामिनी।2।

यक्ष , गंधर्व, मुनि , किन्नरोरग,जनुज,मनुज मज्जहिं सुकृत -पुंज युत-कामिनी।।
स्वर्ग -सोपान, विज्ञान-ज्ञानप्रदे, मोह मद मदन पाथोज हिमयामिनी।3।

हरित गंभीर वानीर दुहुँ तीरवर, मध्य धारा विशद, विश्व अभिरामिनी।
नील-पर्यक-कृत -शयन सर्पेश जनु, सहस सीसावली स्त्रोत सुर-स्वामिनी।4।

 अमित-महिमा अमितरूप, भूपावली-मुकुट-मनिवंद्य त्रैलोक पथगामिनी।
देहि रघुबीर -पद-प्रीति निर्भर मातु, दासतुलसी त्रासहरणि त्रासहरणि भवभामिनी।5।