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विनयावली / तुलसीदास / पद 21 से 30 तक / पृष्ठ 4

पद 27 से 28 तक

(27)

जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकररविग्रह पुरारीं।
 राम-रोषानल- ज्वालमाला-मिष ध्वांतचर-सलभ-संहारकारी।1।

जयति मरूदंजनामोद-मंदिर, नतग्रीव सुग्रीव-दुःखैकबंधो।
यातुधरनोद्धत-क्र्रुद्ध-कालाग्निहर, सिद्ध-सुर-सज्जनानंद-सिंधो। 2।

 जयति रूद्राग्रणी, विश्व-वंद्याग्रणी, विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती।
समगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती।3।

जयति संग्रामजय, रामसंदेसहर, कौशला-कुशल-कल्याणभाषी।
राम-विरहार्क-संतप्त-भरतादि-नरनारि-शीतलकरण कल्पशाषी।4।

जयति सिंहासनासीन सीतारमण, निरखि निर्भरहरष नृत्यकारी।
राम संभ्राज शोभा-सहित सर्वदा तुलसिमानस-रामपुर-विहारी।5।

(28)

जयति वात-संजात, विख्यात विक्रम, बृहद्बाहु, बलबिपुल, बालधिबिसाला।
 जातकरूपाचलाकारविग्रह, लसल्लोम विद्युल्लता ज्वालमाला।1।

जयति बालार्क वर-वदन,पिंगल-नयन, कपिश-कर्कश-जटाजूटधारी।
विकट भृकुटी, वज्र दशन नख, वैरि-मदमत्त-कुंजर-पुंज-कुंजरारी।2।

जयति भीमार्जुन-व्यालसूदन-गर्वहर, धनंजय-रथ-त्राण-केतू।
भीष्म-द्रोण-कर्णादि-पालित, कालदृक सुयोधन-चमू-निधन-हेतू।3।

जयति गतराजदातार, हंतार संसार-संकट, दनुज-दर्पहारी।
ईति-अति-भीति-ग्रह-प्रेत-चौरानी -व्याधिबाधा-शमन घोर मारी।4।

जयति निगमागम व्याकरण करणलिपि, काव्यकौतुक-कला-कोटि-सिंधो।
सामगायक, भक्त-कामदायक, वामदेव, श्रीराम-प्रिय-प्रेम बंधो।5।

जयति धर्माशु-संदग्ध-संपाति-नवपक्ष-लोचन-दिव्य-देहदाता।
कालकलि-पापसंताप-संकुल सदा, प्रणत तुलसीदास तात-माता।6।