पद संख्या 273 तथा 274
(273)
तुम तजि हौं कासों कहौं , और को हितू मेरे?
दीनबंधु! स्ेवक, सखा, आरत, अनाथपर सहज छोह केहि केरे।1।
बहुत पतित भवनिधि तरे बिनु तरि बिनु बेरे।
कृपा-कोप-सतिभयहू, धोखेहु-तिरछेहू, राम! तिहारेहि हेरे।2।
जो चितवनि सौधी लगै, चितइये सबेरे।
तुलसिदास अपनाइये , कीजै न ढील, अब जिवन-अवधि अति नेेरे।3।
(274)
जाउँ कहाँ , ठौर है कहाँ देव! दुखित-दीनको?
को कृपालु स्वामी- सारिखो, राखै सरनागत सब अँग बल -बिहीनको।1।
गनिहि, गुनिहि साहिब लहै, सेवा समीचीनको।
अधम अगुन आलसिनको पालिबो फबि आयो रघुनायक नवीनको।2।
मुखकै कहा कहौं , बिदित है जीकी प्रभु प्रबीनको।
तिहू काल, तिहू लोकमें ऐक टेक रावरी तुलसी से मन मलीनको।3।