विनयावली / तुलसीदास / पद 41 से 50 तक / पृष्ठ 5
पद संख्या 49 तथा 50
(49)
देव-
दनुज-बन-दहन, गुन-गहन, गोविंद नंदादि-आनंद-दातऽविनाशी।
शंभु,शिव,रूद्र,शंकर,भयंकर, भीम,घोर, तेजायतन, क्रोध-राशी।1।
अनँत, भगवंत-जगदंत-अंतक-त्रास-शमन,श्रीरमन, भुवनाभिरामं।
भुधराधीश जगदीश ईशान विज्ञानघन, ज्ञान-कल्यान-धामं।2।
वामनाव्यक्त, पावन, परावर, विभो, प्रगट परमातमा, प्रकृति-स्वामी।
चंद्रशेखर, शूलपाणि, हर, अनध, अज,अमित, अविछिन्न, वृषभेश-गामी।3।
नीलजलदाभ तनु श्याम, बहु काम छवि राम राजीवलोचन कृपाला।
कंबु-कर्पूर-वपु धवल, निर्मल मौलि जटा, सुर-तटिनि,सित सुमन माला।4।
वसन किंजल्कधर,चक्र-सारंग-रद-कंज-कौमोदकी अति विशाला।
मार-करि-मत्त- मृगराज, त्रैनैन, हर, नौमि अपहरण संसार-जाला।5।
कृष्ण,करूणाभवन, दवन कालीय खल, विपुल कंसादि निर्वशकारी।
त्रिपुर-मद-भंगकर,मत्तज-चर्मधर, अन्धकोरग-ग्रसन पन्नगारी।6।
ब्रह्म, व्यापक, अकल, सकल, पर परमहित, ग्यान गोतीत, गुण-वृत्ति- हर्ता।
सिंधुसुत-गर्व-गिरि-वज्र, गौरीश, भव, दक्ष-मख अखिल विध्वंसकर्ता।7।
भक्तिप्रिय, भक्तजन-कामधुक धेनु, हरि हरण दुुर्घट विकट विपति भारी।
सुखद, नर्मद, वरद,विरज, अनवद्यऽखिल, विपिन-आनंद-वीथिन-विहारी।8।
रूचिर हरिशंकरी नाम-मंत्रावली द्वंद्वदुख हरनि, आनंदखानी।
विष्णु-शिव-लोक-सोपान-सम सर्वदा वदति तुलसीदास विशुद्ध बानी।9।
(50)-
देव-
भानुकुल -कमल-रवि, कोटि कंदर्प-छवि, काल-कलि-व्यालमिव वैदतेयं।
प्रबल भुजदंड परचंड-कोदंड-धर तूणवर विशिख बलमप्रमेयं।1।
अरूण राजीवदल-नयन, सुषमा-अयन, श्याम तन-कांति वर वारिदाभं।
तप्त कांचन-वस्त्र, शस्त्र-विद्या-निपुण, सिद्ध-सुर-सेव्य,पाथोजनाभं।2।
अखिल लावण्य गृह, विश्व-विग्रह, परम प्रौढ़, गुणगूढ़,महिमा उदारं।
दर्धर्ष, दुस्तर, दुर्ग, स्वर्ग-अववर्ग-पति, भग्न संसार-पादप कुठारं।3।
शापवश मुनिवधू-मुक्तकृत, विप्रहित, यज्ञ-रक्षण-दक्ष, पक्षकर्ता।
जनक-नृप सदसि शिवचाप-भंजन, उग्र भार्गवागर्व-गरिमापहर्ता।4।
गुरू-गिरा-गौरवामर-सुदुस्त्यज राज्य त्यक्त, श्रीसहित सौमित्र-भ्राता।
संग जनकात्मजा, मनुजमनुसृत्य अज, दुष्ट-वध-निरत, त्रैलोक्यत्राता।5।
दंडकारण्य कृतपुण्य पावन चरण, हरण मारीचं-मायाकुरंगं।
बालि बलमत्त गजराज इव केसरी, सुहृद-सुग्रीव-दुख-राशि-भंगं।6।
ऋक्ष, मर्कट विकट सुभ्ज्ञट उद्भट समर , शैल-संकाश रिपु त्रासकारी।
बद्धपायोधि, सुर-निकर-मोचन, सकुल दलन दससीस-भुजबीस भारी।7।
दुष्ट विबुधारि-संधात, अपहरण महि-भार, अवतार कारण अनूपं।
अमल, अलवद्य, अद्धैत, निर्गुण, सगुण, ब्रह्म सुमिरामि नरभूप-रूपं।8।
शेष -श्रुति-शारदा-शंभु-नादक-सनक गनत गुन अंत नहिं नव चरित्रं।
सोइ राम कामारि -प्रिय अवधपति सर्वदा दास तुलसी -त्रास-निधि वहित्रं।9