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विनयावली / तुलसीदास / पद 91 से 100 तक / पृष्ठ 5

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(पद 91 से 100 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5 से पुनर्निर्देशित)
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पद संख्या 99 तथा 100

(99)

श्री बिरद गरीब निवाज रामको।

गावत बेद-पुरान, संभु-सुक, प्रगट प्रभाउ नामको।

ध्रुव, प्रह्लाद, विभीषन, कपिपति, जड़ पतंग,पांडव, सुदामको।

लोक सुजस परलोक सुगति, इन्हमें को है राम कामको।।

गनिका, कोल, किरात, आबिकब इन्हते अधिक बाम को।
 
बाजिमेध कब कियो अजामिल, गज गायो कब सामको।

छली, मलीन, हीन सब ही अँग, तुलसी सो छीन छामको।

नाम-नरेस-प्रताप प्रबल जग, जुग-जुग चालत चामको।।

(100)
सुनि सीतापति-सील-सुभ्सउ।
मोद न मन, तन पुलक, नयन जल, सेा नर खेहर खाउ।1।

सिसुपनतें पितु, मातु, बंधु, गुरू, सेवक, सचिव, सखाउ।
कहत राम-बिधु-बदन रिसोहैं सपनेहुँ लख्यो न काउ।2।

खेलत संग अनुज बालक नित, जोगवत अनट अपाउ।
जीति हारि चुचुकारि दुलारत, देत दिवावत दाउ।3।

सिला साप-संताप-बिगत भइ परसत पावन पाउ।
 दई सुगति सो न हेरि हरष हिय, चरन छुएकेा पछिताउ।4।

भव-धनु भंजि निदरि भूपति भृगुनाथ खाइ गये ताउ।
छमि अपराध, छमाइ पाँय परि, इतौ न अनत समाउ।5।

कह्यो राज, बन दियो नारिबस, गरि गलानि गयो राउ।
ता कुमातुको मन जोगवत ज्यों निज तन मरम कुघाउ।6।

कपि-सेवा-बस भये कनौड़े, कह्यो पवनसुत आउ।
देबेको न कछू रितियाँ हौं धनिक तूँ पत्र लिखाउ।7।

अपनाये सुग्रीव बिभीषन, तिन न तज्यो छल-छाउ।
भरत सभा सनमानि, सराहत, होत न हृदय अघाउ।8।

निज करतूति भगतपर चपत चलत चरचाउ।
सकृत प्रनाम प्रनत जस बरनत, सुनत कहत फिरि गाउ।9।

समुझि समुझि गुनग्राम रामके , उर अनुराग बढ़ाउ।
तुलसिदास अनयास रामपद पाइहैं प्रेम -प्रसाउ।10।