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बहाना ढूंढ ही लेता है, खूँ बहाने का / एहतराम इस्लाम

बहाना ढूंढ ही लेता है खूँ बहाने का,
है शौक कितना उसे सुर्ख़ियों में आने का।

मिले हैं जख़्म उसे इस क़दर कि अब वो भी,
कभी किसी को नहीं आईना दिखाने का।

बुलन्दियाँ मुझे ख़ुद ही तलाश कर लेंगी,
अता तो कीजिए मौक़ा नज़र में आने का।

करिश्मा कोहकनों ही के बस का होता है,
किसी पहाड़ से दरिया निकाल पाने का।

कहीं तुझे भी न बे-चेहरा कर दिया जाए,
तुझे भी शौक़ बहुत है शिनाख़्त पाने का।