बाघ / अनुज लुगुन
बाघ
जंगल पहाड़ी के इस ओर है और
बाघ पहाड़ी के उस पार
पहाड़ी के उस पार महानगर है,
उसने अपने नाख़ून बढ़ा लिए हैं
उसकी आँखें
पहले से ज़्यादा लाल और प्यासी हैं
वह एक साथ
कई गाँवों में हमला कर सकता है
उसके हमलों ने
समूची पृथ्वी को दो हिस्सों में बाँट दिया है,
जहाँ से वह छलाँग लगाता है
वहाँ के लोगों को लगता है
यह उचित और आवश्यक है
जहाँ पर वह छलाँग लगाता है
वहाँ के लोगों को लगता है
यह उन पर हमला है
और वे तुरन्त खड़े हो जाते हैं
तीर-धनुष, भाले-बरछी और गीतों के साथ,
जहाँ से वह छलाँग लगाता है
वहाँ के लोगों को लगता है
उसके ख़िलाफ़ खड़े लोग
असभ्य, जंगली और हत्यारे हैं
सभ्यता की उद्घोषणा के साथ
वे प्रतिरोध में खड़े लोगों पर बौद्धिक हमले करते हैं
उनकी भाषा को पिछड़ा हुआ और
इतिहास को दानवों की दावत मानते हैं
उनके एक हाथ में दया का सुनहला कटोरा होता है
तो दूसरे हाथ में ख़ून से लथपथ कूटनीतिक खंजर,
युद्ध की संधि रिश्तों से और
रिश्तों से युद्ध करनेवाले
श्रम को युद्ध से और
युद्ध से श्रम का शोषण करने वाले
स्व-घोषित सभ्यता के कूप जन
गुप्तचरी कर और कराकर
किसी की भी आत्मा में प्रवेश कर सकते हैं,
उस दिन जब
सुगना मुण्डा की बेटी ने
उनकी वासनामयी
दैहिक माँग को खारिज़ कर दिया
तो वे ‘चानर-बानर’ बन कर
उसके समाज के अन्दर ही घुस आए
अब वे दैहिक सुख के लिए
सुगना मुण्डा की बेटी के
वंशजों की आत्मा में भी प्रवेश कर
बाघ का रूप धर रहे हैं
सुगना मुण्डा की बेटी हैरान है कि वह
उस बाघ की पहचान कैसे करे...?
कुछ कहते हैं
वह सभ्यता का उद्घोषक है
सत्ता का अहं है
कुछ कहते हैं
वह आदमी ही है
तो कुछ यह भी कहते हैं कि
बात बाघ के बाघपन की होनी चाहिए
जो हमारे अन्दर भी है और बाहर भी,
उस दिन से
सुगना मुण्डा की बेटी
बाघ के सामने तन कर खड़ी है...