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बिषहरी का नाग मनियार को लाने के लिये जाना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

होरे चली भेली आवे हे माता धौलागिर पर्वत हे।
होरे जाये तो जुमली हे माता धौलागिर पर्वत हे॥
होरे सुतल जे छैले रे नागा आपन आवास रे।
होरे करले हंकार हे माता नागा मनियार हे॥
होरे देवी के बचन रे नागा सरवन सुनल रे।
होरे आय तो जुमल रे नागा देबी के हजूर रे॥
होरे बोले तो लगले रे नागा देवी से जवाब रे।
होरे केये दुख पड़लो हे माता कौन तो बिपति रे॥
होरे किये मैं कहबों रे नागा कहलो नहिं जाय रे।
होरे बड़ दुख पड़ल रे नागा वह तो विपति रे॥
होरे पड़ल बिवाद रे नागा चांदो सौदागर रे।
होरे मिरतु भुबन रे नागा पुजवा दिलाएबो रे॥
होरे मिरतु तो भुवन रे नागा नाम जे तोहार रे।
होरे एतना बएर रे नागा साधी मोरा देह रे॥
होरे देह मोरा मोट हे माता कैसे के जायब हे।
होरे सुनहु-सुनहु हे माता बचन हमार हे॥
होरे खोनाक पति हे माता समुन्दर केर बालू हे।
होरे अखरा से भूमा हे माता मोर मलब हे॥
होरे यह तीनों चीज हे माता देह मोरा मलब हे।
होरे केशसन होईबे हे माता लोहा बांसघर जायब हे॥