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मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ३६

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बिक जा बिन माँगे मन चाहा मोल चुका देता मधुकर
जगत छोड़ देता वह आ जीवन नैया खेता निर्झर
कठिन कुसमय शमित कर तेरा आ खटकाता दरवाजा
टेर रहा है प्रीतिपीठिका मुरली तेरा मुरलीधर।।176।।

रहे न तुम वह था न रहोगे तब भी वह होगा मधुकर
टेर रहा तेरे अंचल की छाया में लुक छिप निर्झर
भींगी पलकें पोंछ तुम्हें ले अंक भाल सहला सहला
टेर रहा है प्रीतिमेदिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।177।।

क्या होती है थकित चकोरी पी पी चन्द्र किरण मधुकर
कहाँ पी कहाँ रटते थकते चातक के न अधर निर्झर
रहो पंथ में आँख बिछाये प्रिया गमन के दिन गिनते
टेर रहा है प्रीतिचातकी मुरली तेरा मुरलीधर।।178।।

पश्चातापी नयन सलिल दिन रात बहाता रह मधुकर
बिलख हाय मिल सका न प्रिय का मिलन महोत्सव रस निर्झर
अनायास ही अनुकंपा से आ जायेगा वह नटवर
टेर रहा है प्रीतिभामिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।179।।

जब प्रयाणरत प्राणों की होगी कम्पित बाती मधुकर
शोकाकुल आँगन बिरवा की सूखेगी छाती निर्झर
तुम्हें अंक में ले रच देगा माथे पर सौभाग्य तिलक
टेर रहा है प्रीतिमंजरी मुरली तेरा मुरलीधर।।180।।