भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर / ग़ालिब

Kavita Kosh से
(मेरा जूता है जापानी / श्री ४२० से पुनर्निर्देशित)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सताइश<ref>प्रशंसक</ref>-गर है ज़ाहिद<ref>तपस्वी</ref> इस क़दर जिस बाग़े-रिज़वां<ref>स्वर्ग का बाग</ref> का
वह इक गुलदस्ता है हम बेख़ुदों के ताक़े-निसियां<ref>भुलककड़ों का आला</ref> का

बयां क्या कीजिये बेदादे-काविश-हाए-मिज़गां<ref>पलकों की चुभन की बे-इंसाफी</ref> का
कि हर इक क़तरा-ए-ख़ूं दाना है तस्बीहे-मरजां<ref>मूंगे की माला</ref> का
 
न आई सतवते-क़ातिल<ref>हत्यारे का आंतक</ref> भी मानअ़<ref>रोकने वाला</ref> मेरे नालों<ref>रुदन</ref> को
लिया दांतों में जो तिनका, हुआ रेशा<ref>जड़</ref> नैस्तां<ref>बांस का जंगल</ref> का

दिखाऊंगा तमाशा, दी अगर फ़ुरसत ज़माने ने
मेरा हर दाग़-ए-दिल इक तुख्म<ref>बीज</ref> है सर्व<ref>पेड़</ref>-ए-चिराग़ां का
 
किया आईनाख़ाने का वो नक़्शा तेरे जल्वे ने
करे जो परतव<ref>हाल</ref>-ए-ख़ुरशीद-आलम<ref>सूरज की किरण पड़ना</ref> शबनमिस्तां<ref>ओस की दुनिया</ref> का

मेरी तामीर<ref>निर्माण</ref> में मुज़्मिर<ref>निहित, छुपी हुई</ref> है इक सूरत ख़राबी की
हयूला<ref>छवि</ref> बरक़-ए-ख़िरमन<ref>फसल पर गिरने वाली बिजली</ref> का है ख़ून-ए-गरम दहक़ां<ref>किसान</ref> का

उगा है घर में हर-सू<ref>हर तरफ़</ref> सब्ज़ा<ref>घास-फूस</ref>, वीरानी, तमाशा कर
मदार<ref>नींव</ref> अब खोदने पर घास के, है मेरे दरबां का

ख़मोशी में निहां<ref>छुपा हुआ</ref> ख़ूंगश्ता<ref>ख़ून की हुई</ref> लाखों आरज़ूएं हैं
चिराग़-ए-मुरदा<ref>बुझा हुआ चिराग</ref> हूं मैं बेज़ुबां गोर-ए-ग़रीबां<ref>ग़रीब की कब्र</ref> का

हनूज़<ref>अभी</ref> इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार<ref>प्रेयसी के विचार-चिन्ह का प्रतिबिम्ब</ref> बाक़ी है
दिल-ए-अफ़सुर्दा<ref>उदास-ठंडा दिल</ref> गोया हुजरा<ref>कोठरी</ref> है यूसुफ़ के ज़िन्दां<ref>कैदखाना</ref>का

बग़ल में ग़ैर की आप आज सोते हैं कहीं, वरना
सबब<ref>मतलब</ref> क्या? ख़्वाब में आकर तबस्सुम-हाए-पिनहां<ref>हल्की-सी मुस्कराहट</ref> का

नहीं मालूम किस-किसका लहू पानी हुआ होगा!
क़यामत है सरश्क-आलूदा होना<ref>आंसुओं में भीगना</ref> तेरी मिज़गां<ref>पलकों</ref> का

नज़र में है हमारी जादा-ए-राह-ए-फ़ना<ref>मृत्यु का मार्ग</ref> ग़ालिब
कि ये शीराज़ा<ref>बांधने की डोरी</ref> है आ़लम के अज्जाए-परीशां<ref>बिखरे हुए कण</ref> का

शब्दार्थ
<references/>