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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 3 / नवीन सागर

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अंधेरे में
सूखे पत्तों के ऊपर
चांद सरकता है
किसी पक्षी की चीख़ सुनकर
कीड़े करते हैं आवाज़
मानों धरती की हो !

बेचैन रह जाता हूँ
पिंजरे में निढाल ।