अंधेरे में
सूखे पत्तों के ऊपर
चांद सरकता है
किसी पक्षी की चीख़ सुनकर
कीड़े करते हैं आवाज़
मानों धरती की हो !
बेचैन रह जाता हूँ
पिंजरे में निढाल ।
अंधेरे में
सूखे पत्तों के ऊपर
चांद सरकता है
किसी पक्षी की चीख़ सुनकर
कीड़े करते हैं आवाज़
मानों धरती की हो !
बेचैन रह जाता हूँ
पिंजरे में निढाल ।