भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैने पहने है कपड़े धुले / श्रद्धा जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप भी अब मिरे गम बढ़ा दीजिए
मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए

मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए

रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए

चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए

गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए

चाँद मेरे दुखों को न समझे कभी
चाँदनी आज उसकी बुझा दीजिए

हंसते हंसते जो इक पल में गुमसुम हुई
राज़ "श्रद्धा" नमी का बता दीजिए