Last modified on 24 फ़रवरी 2010, at 19:51

रंगों की बौछार तो लाल गुलाल के टीके / चाँद शुक्ला हादियाबादी

रंगों की बौछार तो लाल गुलाल के टीके
बिन अपनों के लेकिन सारे रंग ही फीके

आँख का कजरा बह जाता है रोते-रोते
खाली नैनों संग करे क्या गोरी जी के

फूलों से दिल को जितने भी घाव मिले हैं
रफ़ू किया है काँटों की सुई से सी के

सब कुछ होते हुए तक़ल्लुफ़ मत करना तुम
हम तो अपने घर ही से आए हैं पी के

तेरी माँग के चाँद सितारे रहें सलामत
जलते रहें चिराग़ तुम्हारे घर में घी के