भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अजब वाइज़ की दींदारी है या रब / इक़बाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजब वाइज़ की दीन-दारी है या रब
अदावत है इसे सारे जहाँ से

कोई अब तक न ये समझा कि इंसाँ
कहाँ जाता है आता है कहाँ से

वहीं से रात को ज़ुल्मत मिली है
चमक तारों ने पाई है जहाँ से

हम अपनी दर्दमंदी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राज़दाँ से

बड़ी बारीक हैं वाइज़ की चालें
लरज़ जाता है आवाज़-ए-अज़ाँ से