भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आएगा वह दिन / बोधिसत्व

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(आभा के लिए)


आएगा वह दिन भी
जब हम एक ही चूल्हे से
आग तापेंगे।

आएगा वह दिन भी
जब मेरा बुखार उतरता-चढ़ता रहेगा
और तुम छटपटाती रहोगी रात भर।

अभी यह पृथ्वी
हमारी तरह युवा है
अभी यह सूर्य महज तेईस-चौबीस साल का है
हमारी ही तरह
,

इकतीस दिसंबर की गुनगुनी धूप की तरह
देर-सबेर आएगा वह दिन भी
जब किलकारियों से भरा
हमारा घर होगा कहीं।