भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहिला सगुनमा तिल-चार हे, तब कय डटारेवो पान हे / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पहिला सगुनमा तिल-चार हे, तब कय डटारेवो पान हे।
देहु गन<ref>दे आओ</ref> दुलरइते बाबा के हाथ, सगुनमा भल हम पयलूँ हे।
लगनियाँ भेलइ उताहुल, सगुनमा भल<ref>शुभ, अच्छा</ref> हम पयलूँ हे॥1॥
कानी-कानी<ref>रो-रोकर</ref> चिठिया लिखथिन दुलरइते बाबू, अहे भाँमर<ref>भँवर। नदी के आवर्त्त में</ref> नदिया अइलइ<ref>आया</ref> तूफान हे।
लंगनियाँ अलइ उताहुल, सगुनमा भल हम पयलूँ हे॥2॥
सुपती<ref>सुपली</ref> खेलइते तूहें दुलरइते बहिनों हे, बहिनी भाँमर
नदिया देही न मनाई हे।
लगनियाँ मोर उताहुल, सगुनमा भल हम पयलूँ हे॥3॥
पुजबो<ref>पूजूँगी</ref> में भाँवर नदिया, सेनुरे पिठार<ref>चावल के आटे का बनाया पीठा</ref> अहे भइया भउजी
उतरे देहु पार हे।
लगनियाँ अलइ उताहुल, सगुनमा भल हम पयलूँ हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>