भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे नाम की अब ज़रूरत नहीं है / अनीता मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे नाम की अब ज़रूरत नहीं है
किसी से कोई भी शिकायत नहीं है

खरीदूँ में सम्मान पैसे के बूते
कलम को ये बिल्कुल इजाजत नहीं है

करूँ वंदना शारदे मातु हरदम
बगैर आपके कोई ताक़त नहीं है

लगा बोलियाँ बिक रहा इल्म देखो
बची कोई इसकी वसीयत नहीं है

ग़ज़ल भी कहूँ छंद भी गुनगुनाऊँ
इनायत मिली और चाहत नहीं है

अगर हो सके बाँट ले दर्द सबके
बड़ी कोई इससे ज़ियारत नहीं है

चुभे हैं जो ख़ंजर निकालो न सिद्धि
हमे राहतों की भी आदत नहीं है