भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे चमन में एक नया गुल खिला है गन्नू / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
मेरे चमन में एक नया गुल खिला है गन्नू
क़ुदरत ने अनमोल-सा तोहफा दिया है गन्नू
मुझको पापा कहने वाला कितना ख़ुश है
उसको पापा कहने वाला मिला है गन्नू
इससे बढ़कर और कोई आनन्द कहाँ है
मेरी गोद में बैठा है हँस रहा है गन्नू
मैं क्या उसकी दादी और बड़े पापा भी
ख़ुश होकर कहते हैं हम पर गया है गन्नू
होड़ लगी रहती है पहले कौन खिलाए
एक खिलौना घर भर को मिल गया है गन्नू
मम्मी की ममता आँखों में भर आई है
आँखों से मम्मी-मम्मी कह रहा है गन्नू
उसका हुक्म बजाना पड़ता है मुझको भी
दादा जी का भी दादा आ गया है गन्नू
ख़ूब फले-फूले जीवन सुखमय हो तेरा
तेरे हक़ में हम सब की ये दुआ है गन्नू