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रंग भर दे / अनीता सिंह

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मन मेरा
कोरा पटल
इंद्रधनुषी रंग भर दे।

गुम गई-सी है हँसी, ढूंढते हर राग में
झाँक आये हैं कुँए में, देख आये बाग़ में।
बूटे बूटे को खबर थी, मन मेरा सूना हुआ
दिल में मेरे टिक न पाया, बांधते किस ताग में।
मेरे घर का
पता देकर
ख़ुशी से मनुहार कर दे।
रंग भर दे।

गहन सूनापन गगन का, उतर आया है नयन में
हो रहा निर्भाव-सा मन, शिला-सी सख्ती अयन में।
शून्य सारी हैं दिशाएं, चेतना भी शून्य है
घड़ी भर पलकें न लगती, नींद निर्वासित शयन में।
लालिमा उषा की लेकर
प्रीत का भिनसार कर दे।
रंग भर दे।

गीत कोई गुनगुना दे, पाखियों की चहक देकर
गंध पूरित देह कर दे, केवड़े की महक देकर।
ओढ़नी में टांक डाले, चाँद तारों की लड़ी
तेज को उद्दीप्त करदे, चिर सुहागन दहक देकर।
तितलियों के पंख से
रंग, चुटकी भर उठाकर
कोई तो शृंगार कर दे।
रंग भर दे।