भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हथेलियों पर धूप / मृदुला सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ!
हम रख दें
उनकी नन्ही हथेलियों पर
थोड़ी सी धूप सुबह की
चिड़ियों का संगीत रख दें
मुस्कुराते होठों पर
और जुबाँ पर रख दें
कुँए के पानी का स्वाद
जानने दें मिट्टी की गंध
उनकी उंगलियों पर
खिलने दें खडिया के रंग
श्यामपट पर लिखे उनके कोरे शब्द
और उस पर उनके खींचे नक्शो मे
विभेदी सपनो का
संसार जगमगायेगा
उनकी दूधिया आंखों में
आजाद परिंदों की परवाजों को
उड़ने दें दूर तक

उन्हें थमाएं वो किताब
जिसके हर पन्ने पर
विज्ञान और जीवन की हरियाली हो
भूल कर भी हम उनको
वे बीज न दें
जिसे मन मे पोस कर
वे बन जाएं वहशी
खड़ा करें ज़खीरे
लड़े अपनो के ही खिलाफ़
और नाम दें धर्मयुद्ध का

वो खुद ही धार बने और काटें
परंपराओं की गहरी नफरती जड़े
इस सदी के मासूम कोरे मन पर
उगने दो कोमल पेड़ मनुष्यता के