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हाथी की छींक / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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छींक आई हाथी भाई को,
उडी गिलहरी दीदी।
रहती थी कलकत्ते में पर,
पहुँची दिल्ली सीधी।
बोली अगर छींकते जमकर,
मजे बहुत आ जाते।
छोड़ प्रदूषित दिल्ली को हम,
पेरिस में बस जाते।