Last modified on 27 जनवरी 2010, at 18:47

वे तुम्हारे पास आएँगे, समझाएँगे / मुकेश जैन

वे तुम्हारे पास आएँगे समझाएँगे
उनके अर्थों में तुम सामाजिक नहीं
हो. तुम नहीं चलते हो उनके पदचिह्नों
को टटोलते हुए. वे तुम्हें बताएँगे समाज
के माने. वे तुम्हे भय दिखाएँगे.

वे तुम्हे बताएँगे, तुम विचारों में
जीते हो. विचार व्यवहारिक नहीं
होते. फिर, वे तुम्हे बताएँगे कि ये
कुण्ठाओं के बदले हुए रूप हैं. तुम
इसका विरोध करोगे. तर्क दोगे.
वे कहेंगे बेमानी. और हंस देंगे
एक खास अंदाज में.

वे बहुत शक्तिशाली हैं. तुमसे भ
अधिक. वे तुम्हें तोड़ने का पूरा
प्रयास करेंगे. वे तुमसे कहेंगे, तुम
पागल हो. सनकी हो. प्रचार करेंगे. वे
तुम्हारा उपहास उड़ाएँगे. तुम्हारी
बातों पर हँसेंगे. वे तुम्हें इसका
एहसास कराएँगे वे तुम्हारे चतुर्दिक
एक वृत्त बना लेंगे. गिरधर राठी
की ‘ऊब के अनंत दिन‘ की तरह.

फिर धीरे धीरे तुम्हें उनकी बातों पर
यक़ीन होने लगेगा. और तुम संकोच
से अपने को सिकोड़ने लगोगे. वे
चाहेंगे कि तुम इतने सिकुड़ जाओ कि
सिफ़र हो जाओ .
___________23/12/1991