वो सराबों के समंदर में उतर जाता है
गाँव को छोड़ के जब कोई शहर जाता है
ऐसा लगता है कि हारा हो जुए में दिन भर
आदमी शाम को जब लौट के घर जाता है
लूट ले कोई सरे आम तो हैरत कैसी
जब कि हर शख़्स गवाही से मुकर जाता है
आज के दौर से जब कोई सुलह करता है
उसके अंदर का जो इन्सान है मर जाता है
अब तो करता नहीं ख़ुद से भी दुआ और सलाम
आदमी अपने बराबर से गुज़र जाता है.