शेष यामिनी मेरा निकट निर्वाण! पागल रे शलभ अनजान! / महादेवी वर्मा
शेषयामा यामिनी मेरा निकट निर्वाण!
पागल रे शलभ अनजान!
तिमिर में बुझ खो रहे विद्युत् भरे निश्वास मेरे,
नि:स्व होंगे प्राण मेरा शून्य उर होगा सवेरे;
राख हो उड़ जायगी यह
अग्निमय पहचान!
रात-सी नीरव व्यथा तम-सी अगम कहानी,
फेरते हैं दृग सुनहले आँसुओं का क्षणिक पानी,
श्याम कर देगी इसे छू
प्रात की मुस्कान!
श्रान्त नभ बेसुध धरा जब सो रहा है विश्व अलसित,
एक ज्वाला से दुकेला जल रहा उर स्नेह पुलकित,
प्रथम स्पन्दन में प्रथम पग
धर बढ़ा अवसान!
स्वर्ण की जलती तुला आलोक का व्यवसाय उज्जवल,
धूम-रेखा ने लिखा पर यह ज्वलित इतिहास धूमिल,
ढूँढती झँझा मुझे ले
मृत्यु का वरदान!
कर मुझे इँगित बता किसने तुझे यह पथ दिखाया,
तिमिर में अज्ञातदेशी क्यों मुझे तू खोज पाया!
अग्निपंथी मैं तुझे दूँ
कौन-सा प्रतिदान?