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सतह और तहों का कारवाँ / केदार गुरुङ / खड़कराज गिरी

भावनाएँ शब्दों से आश्रय मांग रही हैं
शब्द भी आशयों के साथ भूमिगत होकर
नितांत नए कार्य के अभियान की ओर लपकते हुए
--किसी सृजन संगठन में लगे हैं
उस घर या सड़क से होते हुए जाने वाले सभी अर्थ
व्यक्तिगत अनुभूति और समझ-दर्शन अभिव्यक्त कर रहे हैं,
हर पीढ़ी और युग, समय से प्रतिस्पर्धा एवं अनुसरण करते हुए
आदमी को हर रोज़
शताब्दी और सहस्त्राब्दी मनाने को बाध्य कर रहे हैं
कई युग-पुरुष और काल-पुरुषों की औसत-उम्र को भी
ये दिवस-प्रतिदिवस के रूप में पालन कर
उम्र और स्थानों के महत्त्व को कमा रहे हैं!
और,कई आततायी जैसे मन-व्यवहार वाले
ऎतिहासिक दिग्गज पुरूषों के विरुद्ध विकल्पों में
मानवीय चेतना और चरित्रों से ओत-प्रोत हो संघर्ष करते हुए
मानव-क्रम एवं विकासवाद के मील-पत्थर की तरह
हर आगत-विगत में
वर्तमान से गठजोड़ कर
कई स्थापन-विस्थापनों को साथ ले कर
कई संगत-विसंगत स्थिति के रास्ते को पार कर
धर्मशाला और चौपाटी निर्माण करवा रहे हैं
निर्माण और निर्वाण भी सिद्ध करवा रहे हैं !
 
मूल नेपाली से अनुवाद : खड़कराज गिरी