सपने में एक औरत से बातचीत (कविता) / विमल कुमार
पहले दरवाजा खटखटाया उस औरत ने
सपने में
सपने में
कमरे में घुसते हुए बोली कैसे हैं मेरे बच्चे
अब तो हो गए होंगे काफी बड़े
शादी के लायक
स्कूल-कालेज जाते हैं कि नहीं?
मैं उस औरत से क्या कहूँ
कैसे कहूँ
कि उसकी मँझली लड़की भाग गई ड्राइवर के साथ
कैसे कहूँ
कि उनके नाम कट गए
और पिता ने गँवा दिए
जुए और शराब में तुम्हारे जेवरात
सपने में उस औरत को मैंने कहा
तुम बैठो तो सही
कैसी हो तुम कुछ सुनाओ
सपने में वह औरत बोली बैठना क्या?
थोड़ी देर के लिए आयी थी चलती हूँ
तुम बेहद चुप हो
कुछ बताते नहीं?
तुम्हारी मेज़ पर कैसे हैं ये बिख़रे हुए काग़ज़
बक्से में क्या रखा है तुमने
कमरे में कुछ अजीब-सी गंध है
अच्छा तुम्हारी नौकरी का क्या हुआ
क्या कर रहे हो आजकल?
मैं उस औरत को क्या बताऊँ
जो दस साल पैदल चलकर सपने में आयी आज
पहले वह पड़ोस में रहती थी
करती थी कुछ कामकाज
एक दिन अचानक उसके बच्चे रोने लगे दहाड़े मारकर
पति को काटो तो खून नहीं
मैं उस औरत को क्या कहूँ
सपने में मैंने सोचा
सपने में ही कहा
अपना तो चलता ही रहता है कुछ न कुछ
चाय बनाता हूँ थोड़ी देर ठहरो
फिर सपने में उस औरत ने पूछा
अच्छा बताओ शहर में क्या हो रहा है
तुम लोग कुछ करते-वरते हो पहले की तरह या नहीं?
सपने में वह औरत बैठी रही बातें करती रही तरह-तरह की
सुनाती रही अपने अनुभव
वह सपने से जाने लगी उठकर
इसी बीच सपना खत्म हुआ
कि उसके बच्चे आए दौड़े-दौड़े मेरे पास
माँ का स्वास्थ्य कैसा है : मँझली ने पूछा
फूट-फूटकर रोने लगी छुटकी
कई दिनों से माँ अब नहीं दिखती सपने में
बड़की यह कह गंभीर हो गई
ताड़-सी लम्बी और जवान बड़की की गंभीरता को देखकर
मैं सोचने लगा
अगली बार वह औरत फिर कभी आएगी सपने में
पूछेगी इस तरह के ढेर सवाल
तो मैं क्या कहूंगा
कौन-सा झूठ चुनकर इस बार पहले रखना होगा !