साँस्कृतिक केंद्र के आहाते में सँस्कृति इतर चीज़ें / अनूप सेठी
साँस्कृतिक केंद्र के आहाते में सँस्कृति इतर चीजें
बालक की आँखों के सामने जादू चल रहा है
पत्ता गोभी कचर कचर छल्लों में बदल रही है
एलूमीनियम की परात में पहाड़ उग रहा है
उस्ताद की डंठल जैसी सख्त अंगुलियों का करतब
पत्ता गोभी का गेंद गायब हो गया देखते देखते
बालक मँत्रमुग्ध है भयभीत भी
श्हर के व्यस्त और प्रसिध्द सांस्कृतिक केंद्र से सटी
कैंटीन के शैड में रह रह कर बालक का ध्यान टूटता है
ग्रीन रूम से गिलास उठाने हैं धोने हैं चाय ले के जानी है
एक और गेंद का पहाड़ बनता देख के जाएगा बालक
सभागार में दरवाजे से झांका बालक
गायिका के हाथ लचीली टहनियों की तरह लहरा रहे हैं
ओठों से गाने के बोल निकल रहे हैं अनायास
बाजे पर मास्टर की अंगुलियां तैर रही हैं कड़ी गांठदार
ढोलकी पर काली लकड़ियां नाच रही हैं बिलजी की सी फुर्ती से
ये होंगी ढोलची की पतली चपटी अंगुलियां
गहन अँधकार में जगर मगर परीलोक है
मंच पर गाते बजाते तारे हैं
दूसरी तरफ अथाह अंधकार में अनगिनत सांसों की आवाज है
कुछ खटर पटर भी होती है रह रह कर
अंधेरे जँगल में जैसे कोई चल रहा हो बेआवाज
सुध-बुध खोने खोने को है बालक
दरवाजे से सटा रह गया बालक
माँज-माँज कर सजा दी पाँतें कांच के गिलासों की
मध्दम रोशनी में पानी की बूँदें चमक रही हैं
बालक का माथा भी पसीने से तरबतर है
चेहरे पर विजयी मुस्कान है गिलासों पर धावती नजर के साथ
गजब फुर्ती से धुल गए गिलास
और नहीं टूटा एक भी पहली बार
गोभी काटने वाला उस्ताद होता सामने तो निहारता रह जाता
गिलास के भीतर बाहर नर्तन करती नन्हीं सुकोमल अँगुलियाँ
रोज रोज के रतजगे के बाद थकी हुई सुबह है
पहाड़ी बालक के पहाड़ों से आई
गान मंडली का सामान बंध चुका है
बालक भाग भाग नाश्ता दे चुका है
टैक्सी ला चुका है
दिल में हूक सी उठ रही है
उपले सुलग रहे हैं।
गायन मँडली को पता नहीं गोभी काटने वाले का
गोभी काटने वाला बेखबर बालक की मुस्काती फुर्ती से
सभागार इन सबसे अनजान है
ट्रैफिक में उलझ गई है गायन मँडली की टैक्सी
पहाड़ी बालक की पहाड़ी मंडली
इक हूक उठे जा रही है जैसे जब माँ चली जाती थी
बालक को छोड़ खेतों में दिन भर के वास्ते
आग पकड़ लेगा उपला
लॉन की घास हालाँकि हरी-भरी है इकसार कटी हुई
फूल भी खिले हुए हैं
पेट में पर खोह पड़ती चली जाती है
सड़कें, नदियाँ-नाले पर्वत मैदान लाँघती
घास और गोबर भी क्या महकता था
सेब और पुदीने के तो क्या कहने।
(1996)