दुनिया में नैरंगे-दुनिया कम देखा
मिट्टी तो काफ़ी थी दरिया कम देखा
उसने जब भी खोला बन्द जुनूँ अपना
आँखों ने ये तर्ज़े तमाशा कम देखा
हमसे क़नाअत की तो क़ैर नमू निकली
हम दरवेश थे हमने ज़ियादा कम देखा
दिल के चमकते आईने पर राख मिली
देखा हमने ख़ुद को कैसा कम देखा
इस सूरत को मेरी ही आँखें मोज़ूँ थीं
मैंने पानी ज़ियादा सहरा कम देखा
ये कब प्यार की ख़ुश्बू पे पागल होती है
इस दुनिया के सर पे ये सौदा कम देखा
ये सरशारी थी या रंजे-अना था ‘तूर’
मैंने अपने आपको ज़िन्दा कम देखा