सुनलो मोर कहन्या हम ऐली सिरी राम! / सरवन बख्तावर
दिल तो माँगे हम कुछ आप लोगन के सुनाई,
कहानी ना, बलकि इतिहास,
हाँइतिहासहमार, तोहार, हम लोगन के इतिहास,
चल! ले चली हम उस दिन के ओर, जब हम लोगन के पूर्वजन
बहकावा में आयके भारत देश छोरीन
सुनलो मोर कहन्या हम ऐली सिरी राम!
लालारुख जहाज निकरल भारत से,
चलल समुन्दर पार
का भैल जहाज में, सुनावत, करेजवा में लागे कटार!
बाप छोरिन, माई छोरिन, छोरिन बहिन भाई,
आयके गोरवा धरिन, देस्वा जोन रहा पराय,
नाही सोना के थरिया, नाही राज्य प्रभु राम के,
महलन ज आसा दिलाय के, आँखन से मीठा सपना दिखाई के,
हाथ में कत्लिस चापू थमाईस, और बकरन खूब काम कराईस!
बहुत पिरा सहीन, मर मर काम चाहे करिन,
पर अपन धर्म-सभ्यता-संस्कृति के झंडा,
न छोरीन एक्को बन्दा!
रात बिरात कमवा के बाद, देख कौन तमासा रचले,
दुःख दरद भुला कर आपन, घूम घूम कर नचले!
अपने तो पढ़ न लिख सकिन, पर आपन वारिस के पढ़हावत ना थकीन,
कोनों के बनैले डॉक्टर, कोनों के जज,
जितना पैसा कमाईन, करदिन लरकान के पढ़हन लिखन में खरज!
सुनलो मोर कहन्या हम ऐली सिरी राम
आयके चाहे गर्मित काटीन, करिन खूब काम,
पर बनाईस सुरिनाम के आपन हिरदय के धाम!