Last modified on 2 मार्च 2010, at 09:29

लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले,
सुजस-कमाइबैं उछाह-उदगार मैं ।
कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै,
आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ॥
ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब,
हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं ।
डार मैं तमालनि की औअर कछु बिरमानी अरु,
कछु अरुझानी है करीरनि के झार मैं ॥22॥