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362 / हीर / वारिस शाह

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केही वैदगी आन जगायो ई किस वैद नेदस पढ़ायों वे
वांग चैधरी आनके वैद बनयों किस चिठियां घल सदायों वे
सेली टोपियां पहन लंगूर वांग तूं तां शाह भोला<ref>बंदर</ref> बन आयों वे
वडे दगे ते फंध फरेब पढ़यों ऐवें पाड़ के कन्न गवायों वे
ना तू जनयां ना फकीर रहयों ऐवें मुंदके घोन करायों वे
बुरे दिनां भैड़ियां वादियां नी अज रब्ब ने ठीक कुटायों वे
वारस शाह कर बंदगी रब्ब दी तूं जिस वासते रब्ब बनायों वे

शब्दार्थ
<references/>