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437 / हीर / वारिस शाह

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मीट अखियां रखियां बंदगी ते घते जालयां चिले विच हो रहया
करे आजजी<ref>लाचारी</ref> विच मराकबे<ref>समाधि</ref> दे दिन रात खुदा ते हो रहया
विच याद खुदा दे महव रहिंदा कदे बैठ रहया कदे सो रहया
वारस शाह न फिकर कर मुशकलां दा जो कुझ होवना सी सो कुझ हो रहया

शब्दार्थ
<references/>