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49 / हीर / वारिस शाह

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बेड़ी नहीं एह जंझ दी बनी बैठक जो कोई आवे सो सद बहांवदा ए
गडा-वडा<ref>लगातार</ref> अमीर वजीर बैठे कौन पुछदा ए केहड़ी थाउं दा ए
जिवें शमां ते डिगन पतंग धड़ धड़ लंझ नैं मुहानया<ref>टोला</ref> आंवदा ए
खवाजा खिजर दा बालका आन लथा जनाखना शरीनियां<ref>मिठाई</ref> लयांवदा ए
लुडन नाह लंघाया पार उसनूं ओस वेलड़े नूं पछोतांवदा ए
यारो झूठ न करे खुदा सचा रन्नों मेरियां एह खिसकांवदा ए
इक सद दे नाल एह जिंद लैंदा पंछी डेगदा मिरग फहाउंदा ए
ठग सुने थनेसरों आंवदे ने एह तां जाहरा ठग झनाउं दा ए
वारस शाह मियां वली जाहरा ए वेख हुने झबेल कुटाउंदा ए

शब्दार्थ
<references/>