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511 / हीर / वारिस शाह

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सहती माउ नूं आखदी सुनी मांईए किस वासते जिउ तपांवनी ए
नुंह लाल जेही अंदर घतिया ई परख वाझ तूं लाल वजांवनी ए
तेरी पूंह पंज-फूलड़ी<ref>नाजुक</ref> पदमनी ए वाऊ लैन खुनों क्यों गवावनी ए
पई अंदरे हो बिमार चली जान बुझ के दुख वधावनी ए
भावे पई रहे दिन रात अंदर नाल शौक दे नहि बलांवनी ए
एह फुल गुलाब दा गुट अंदर पई दुखड़े नाल सुकावनी ए
अठ पहर ही ताड़के विच कोठे पतर पानां दे पई सुकावनी ए
वारस धी सयालां दी मारनी ए दस आप नूं कौन सदावनी ए

शब्दार्थ
<references/>