भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

514 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हीर आखया बैठ के उमर सारी मैं ते आपने आप नूं साड़नी हां
मतां बाग गयां मेरा जिउ लगे अंत एह भी पड़तना पाड़नी हां
पई रोणियां मैं लेख आपने नूं कुझ किसे दा नही विगाड़नी हां
वारस शाह मियां तकदीर आखे वेख नवां पसार पसारनी हां

शब्दार्थ
<references/>