ख़ूनी पंजा / गोरख पाण्डेय
ये जो मुल्क़ पे कहर-सा बरपा है
ये जो शहर पे आग-सा बरसा है
बोलो यह पंजा किसका है ?
यह ख़ूनी पंजा किसका है ?
पैट्रोल छिड़कता जिस्मों पर
हर जिस्म से लपटें उठवाता
हर ओर मचाता क़त्लेआम
आँसू और ख़ून में लहराता
पगड़ी उतारता हम सबकी
बूढ़ों का सहारा छिनवाता
सिन्दूर पोंछता बहुओं का
बच्चों के खिलौने लुटवाता
बोलो यह पंजा किसका है ?
यह ख़ूनी पंजा किसका है ?
सत्तर में कसा कलकत्ते पर
कुछ जवाँ उमंगों के नाते
कस गया मुल्क़ की गर्दन पर
पचहत्तर के आते आते
आसाम की गीली मिट्टी में
यह आग लगाता आया है
पंजाब के चप्पे-चप्पे पर
अब इसका फ़ौजी साया है
ये जो मुल्क़ पे कहर-सा बरपा है
ये जो शहर पे आग-सा बरसा है
बोलो यह पंजा किसका है ?
यह ख़ूनी पंजा किसका है ?
सरमाएदारी की गिरफ़्त
तानाशाही का परचम
ये इशारा जंगफ़रोशी का
तख़्ते की गोया कोई तिकड़म
यह जाल ग़रीबी का फैला
देसी मद में रूबल की अकड़
यह फ़िरकापरस्ती का निशान
भाईचारे पे पड़ा थप्पड़
ये जो मुल्क़ पे कहर-सा बरपा है
ये जो शहर पे आग-सा बरसा है
बोलो यह पंजा किसका है ?
यह ख़ूनी पंजा किसका है ?
यह पंजा नादिरशाह का है
यह पंजा हर हिटलर का है
ये जो शहर पे आग-सा बरसा है
यह पंजा हर ज़ालिम का है
ऐ लोगो ! इसे तोड़ो वरना
हर जिस्म के टुकड़े कर देगा
हर दिल के टुकड़े कर देगा
यह मुल्क के टुकड़े कर देगा