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"बादशाह हुसैन रिजवी का दुख / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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युद्ध उनका प्रिय विषय भी
 
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उनकी दिलचस्पी पाकिस्तान ने भी
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नही है
 
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सिवा इसके कि हसीन और मशहूर
 
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गायिका नूरजहाँ वहाँ रहती है
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गायिका नूरजहाँ वहाँ रहती हैं
 
बादशाह हुसैन रिजवी और नूरजहाँ
 
बादशाह हुसैन रिजवी और नूरजहाँ
 
अलग-अलग शहरों में जवान
 
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एक साथ दोनों के चेहरों पर
 
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झुर्रियों के जंगल उगे होंगे
 
झुर्रियों के जंगल उगे होंगे
नूरजहाँ की सारी दुनियां
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नूरजहाँ को सारी दुनिया
 
जानती थी और बादशाह हुसैन
 
जानती थी और बादशाह हुसैन
रिजवी को?
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रिजवी को ?
  
 
बादशाह हुसैन रिजवी के पास
 
बादशाह हुसैन रिजवी के पास
नूरजहाँ के हज़ारों क़िस्से है
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नूरजहाँ के हज़ारों क़िस्से हैं
 
वे क़िस्से बहुत बढियां ढंग से
 
वे क़िस्से बहुत बढियां ढंग से
सुनाते है
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सुनाते हैं
 
क़िस्सा कहते-कहते काढ़ लेते हैं
 
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आदमी का कलेजा
 
आदमी का कलेजा
  
वे रेलवे में काम करते है
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वे रेलवे में काम करते हैं
 
लेकिन दफ़्तर में कम पाए
 
लेकिन दफ़्तर में कम पाए
जाते है
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उनका अड्डा अपने या दोस्तों
 
उनका अड्डा अपने या दोस्तों
 
के घर खूब जमता है
 
के घर खूब जमता है
बाक़ी समय में वे क़िताबो
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बाक़ी समय में वे क़िताबों
के साथ उलझे रहते है
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के साथ उलझे रहते हैं
 
रोज़मर्रा की समस्याएँ उन्हे
 
रोज़मर्रा की समस्याएँ उन्हे
 
विचलित करती हैं
 
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जब मुल्क में दंगा होता है
 
जब मुल्क में दंगा होता है
 
वे गुस्से में आ जाते हैं
 
वे गुस्से में आ जाते हैं
वे सोचते है इतनी तरक्की के बावजूद
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वे सोचते हैं इतनी तरक्की के बावजूद
 
आदमी कसाई क्यों हो जाता है
 
आदमी कसाई क्यों हो जाता है
 
और शहर को एक बूचड़खाने में
 
और शहर को एक बूचड़खाने में
 
बदल देता है
 
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वे दंगों के पीछे छिपे हैवान का
 
वे दंगों के पीछे छिपे हैवान का
चेहरा पहचानते है
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चेहरा पहचानते हैं
 
बादशाह हुसैन रिजवी हिन्दू अथवा
 
बादशाह हुसैन रिजवी हिन्दू अथवा
मुसलमान नही एक इनसान है
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मुसलमान नहीं, एक इनसान हैं
लेकिन हिन्दुओ के मुहल्ले में उन्हें
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लेकिन हिन्दुओं के मुहल्ले में उन्हें
 
मुसलमान समझा जाता है
 
मुसलमान समझा जाता है
 
यही बादशाह हुसैन रिजवी का
 
यही बादशाह हुसैन रिजवी का
दुःख है
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दुख है
 
जिसे दिल्ली के शाही इमाम और
 
जिसे दिल्ली के शाही इमाम और
 
विश्व हिन्दू परिषद के आका नही
 
विश्व हिन्दू परिषद के आका नही
 
समझ पाते ।
 
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08:16, 21 जून 2024 के समय का अवतरण

आप बादशाह हुसैन रिजवी को
कत्तई नही जानते
वे राजीव गांधी की तरह
मशहूर आदमी नही हैं
बादशाह हुसैन रिजवी अफ़सानानिगार है
वे शहर के सब्ज़ीमण्डी मुहल्ले में
सन 1962 से तशरीफ़ रखते है
यह सन् मुझे इसलिए याद है कि
इस सन् में भारत-चीन का
युद्ध हुआ था
उसके थोड़े दिन बाद
भारत-पाकिस्तान की लड़ाई
हुई थी
जंग क्यों हुई थी यह
आम आदमी की तरह बादशाह हुसैन रिजवी
नही जानते थे
युद्ध उनका प्रिय विषय भी
नही था
उनकी दिलचस्पी पाकिस्तान में भी
नही है
सिवा इसके कि हसीन और मशहूर
गायिका नूरजहाँ वहाँ रहती हैं
बादशाह हुसैन रिजवी और नूरजहाँ
अलग-अलग शहरों में जवान
हुए
एक साथ दोनों के चेहरों पर
झुर्रियों के जंगल उगे होंगे
नूरजहाँ को सारी दुनिया
जानती थी और बादशाह हुसैन
रिजवी को ?

बादशाह हुसैन रिजवी के पास
नूरजहाँ के हज़ारों क़िस्से हैं
वे क़िस्से बहुत बढियां ढंग से
सुनाते हैं
क़िस्सा कहते-कहते काढ़ लेते हैं
आदमी का कलेजा

वे रेलवे में काम करते हैं
लेकिन दफ़्तर में कम पाए
जाते हैं
उनका अड्डा अपने या दोस्तों
के घर खूब जमता है
बाक़ी समय में वे क़िताबों
के साथ उलझे रहते हैं
रोज़मर्रा की समस्याएँ उन्हे
विचलित करती हैं
जब मुल्क में दंगा होता है
वे गुस्से में आ जाते हैं
वे सोचते हैं इतनी तरक्की के बावजूद
आदमी कसाई क्यों हो जाता है
और शहर को एक बूचड़खाने में
बदल देता है
वे दंगों के पीछे छिपे हैवान का
चेहरा पहचानते हैं
बादशाह हुसैन रिजवी हिन्दू अथवा
मुसलमान नहीं, एक इनसान हैं
लेकिन हिन्दुओं के मुहल्ले में उन्हें
मुसलमान समझा जाता है
यही बादशाह हुसैन रिजवी का
दुख है
जिसे दिल्ली के शाही इमाम और
विश्व हिन्दू परिषद के आका नही
समझ पाते ।