भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पाण्डोरा का बक्सा / ईप्सिता षडंगी / हरेकृष्ण दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईप्सिता षडंगी |अनुवादक=हरेकृष्ण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
सपने सब सच हो रहे थे
 
सपने सब सच हो रहे थे
गोद में माँ ।
+
गोद में माँ
  
 
आहिस्ता आहिस्ता
 
आहिस्ता आहिस्ता
जवां होने लगी में
+
जब जवां होने लगी मैं
सपने भी होते गए भारी।
+
सपने भी होते गए भारी ।
तो उन्हें कैद करना पड़ा
+
तो उन्हें क़ैद करना पड़ा
 
बक्से में एक
 
बक्से में एक
आधा बुना स्वेटर सा
+
किसी अधबुने स्वेटर की तरह
या एक टेडी की तरह
+
या एक अधबने टेडी भालू की तरह
आधा बना।
+
  
बंध गया में जब
+
बंध गई मैं जब
एक खंभे से जा कर
+
एक खम्भे से जाकर
दूसरे खंबे में-
+
तब मैंने सोचा
तो मैं सोची
+
 
सच्चा सुख मिले ना सही
+
सच्चा सुख मिले या न मिले
सपनों के साथ जीना
+
लेकिन अपने सपनों के साथ जीना
निराला भी तो है।
+
निरालापन होगा ।
उस बक्से को ले आई मैं इधर
+
उस बक्से को मैं ले आई अपने साथ इधर
मेरी नई केद खाने पर।
+
अपने नए क़ैदख़ाने पर ।
निहारे और खुश हुए-
+
 
सब।
+
सबने उसे निहारा और
मगर कोई बोला- मेरे कमरे में फिर किसी ने बोला-
+
खुश हुए सब ।
मेरे अलमारी में
+
मगर कोई बोला पहले मेरे कमरे में  
तो और किसी ने कहा-
+
फिर कोई बोला मेरी आलमारी में
मेरे दिल में
+
फिर किसी और ने कहा मेरे दिल में
जगह ही नहीं थोड़ा सा भी कहीं।
+
जगह ही नहीं थोड़ी सी भी कहीं ।
 
सपनों को दिशा दिखा दी गई
 
सपनों को दिशा दिखा दी गई
सही जगह उनके।
+
सही जगह उनकी ।
अब मेरी कहानी कैद होकर रह गई है
+
 
इस बंद बक्सा में ।
+
अब मेरी कहानी क़ैद होकर रह गई है
 +
इस बंद बक्से में ।
 
बक्से में मेरे साथ
 
बक्से में मेरे साथ
सिकुड़ी हुए हैं मेरे सपने
+
सिकुड़े पड़े हैं मेरे सपने
पड़े हैं धूल से भरी
+
पड़े हैं धूल में लिपटे
किसी कोने में कहीं।
+
किसी कोने में कहीं ।
  
 
'''ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास'''
 
'''ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास'''
 
</poem>
 
</poem>

07:02, 20 मई 2024 का अवतरण

{{KKCatKavita}

सपने सब सच हो रहे थे
गोद में माँ ।

आहिस्ता आहिस्ता
जब जवां होने लगी मैं
सपने भी होते गए भारी ।
तो उन्हें क़ैद करना पड़ा
बक्से में एक
किसी अधबुने स्वेटर की तरह
या एक अधबने टेडी भालू की तरह ।

बंध गई मैं जब
एक खम्भे से जाकर
तब मैंने सोचा

सच्चा सुख मिले या न मिले
लेकिन अपने सपनों के साथ जीना
निरालापन होगा ।
उस बक्से को मैं ले आई अपने साथ इधर
अपने नए क़ैदख़ाने पर ।

सबने उसे निहारा और
खुश हुए सब ।
मगर कोई बोला पहले मेरे कमरे में
फिर कोई बोला मेरी आलमारी में
फिर किसी और ने कहा मेरे दिल में
जगह ही नहीं थोड़ी सी भी कहीं ।
सपनों को दिशा दिखा दी गई
सही जगह उनकी ।

अब मेरी कहानी क़ैद होकर रह गई है
इस बंद बक्से में ।
बक्से में मेरे साथ
सिकुड़े पड़े हैं मेरे सपने
पड़े हैं धूल में लिपटे
किसी कोने में कहीं ।

ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास